बढ़ती यौन हिंसा के खिलाफ अपील और माँग पत्र
हाल ही में दिल्ली में 23 वर्षीय महिला के
साथ हुई क्रूरतम सामूहिक बलात्कार की घटना ने पूरे देश को झकझोर दिया है| इस तथ्य ने कि इस महिला को एक भीड़ भरे बस स्टैंड से उसके
पुरुष साथी के साथ उठाया गया और फिर चलती बस में बलात्कार किया गया, सभी को स्तब्ध कर
दिया| जिस निर्ममता और क्रूरता के साथ इस बलात्कार की घटना को अंजाम दिया गया उससे
सारे देश में आक्रोश की लहर दौड़ गयी| देशव्यापी पैमाने पर महिलाओं और आम जनता का भारी
विरोध-प्रदर्शन न सिर्फ दुःख का इजहार है बल्कि महिलाओ पर लगातार बढती हिंसा
के खिलाफ ज़बरदस्त गुस्से की अभिव्यक्ति भी है| आख़िरकार सामूहिक बलात्कार की यह
घटना कोई अलग या आम जिन्दगी से हटकर हुई घटना नही है बल्कि हमारी ज़िन्दगी में
अन्दर गहरे तक बसी हुई सड़ान्ध की ही अभिव्यक्ति है जो आज खुलकर सामने है और कभी
छुपे रूप में आती है !
यद्यपि सड़को पर बड़े
पैमाने पर जनाक्रोश और बरसो का दबा गुस्सा फूट पड़ा है, दुर्भाग्य की बात
यह है की इस मसले को हल करने के तर्कसंगत और गंभीर प्रयास नही किये गए| अचानक उपजे
गुस्से और सांकेतिक हिंसा ने हमारी निराशा और कुंठा को तो निकलने का रास्ता दिया
परन्तु साथ ही साथ इसमें इस व्यवस्था और इसकी पतनशील सड़ी गली संस्कृति
का हिस्सा बनने के खतरे भी निहित है इसलिए यह एक उपयुक्त और अनिवार्य अवसर है की
हम भविष्य के लिए ऐसी रणनीति तैयार करे जिससे इस तरह की घटनाओ की पुनरावृति रोकी
जा सके और महिलाओं के प्रति होने वाली हिंसा के खिलाफ चलने वाले आन्दोलन का
संदिग्ध और असामाजिक तत्वों के द्वारा दुरूपयोग न हो सके ! हमें अपने संघर्ष
की स्वायत्ता और इच्छा शक्ति की स्वतंत्रता को बनाये रखना है, हमें अपने इस जारी
संघर्ष को रूप और धार देने के लिए सचेतन प्रयास करने होंगें|
महत्वपूर्ण बात जो हमें याद रखनी है वह यह है
कि हमारा संघर्ष सामूहिक बलात्कार की इस घटना मात्र से नहीं है बल्कि महिलाओं के
प्रति शोषण और अत्याचार पर टिकी इस पूरी व्यवस्था से है| यह एक तथ्य है कि इस देश
में महिलाओं का शोषण और उत्पीड़न अलग-अलग रूपों में होता रहा है और हो रहा है| हाल ही में हरियाणा, गुजरात, उत्तर प्रदेश और दूसरे राज्यों से बलात्कार की
घटनाएँ सामने आई हैं| लेकिन मीडिया ने देश की राजधानी में घटित होने के कारण इसे
विशेष मुद्दा बना दिया है| स्पष्ट है कि देश के अन्य भागो में होने वाली
ऐसी ही घटनाओं पर मीडिया का ध्यान नही जाता क्योंकि उन घटनाओं को दिखाने से मीडिया
चैनलों की टीआरपी में कोई खास इजाफा नही होता और पूँजी और सत्ता के
गलियारों पर कोई खास फर्क नहीं पड़ता| इसका यह मतलब नहीं है की इससे पहले महिला मुद्दों पर संघर्ष या आन्दोलन
नही हुए है बल्कि वर्तमान संघर्ष को पहले के संघर्षो की एक
कड़ी के रूप में देखा जाना चाहिए| चाहे वह कश्मीर सेना द्वारा महिलाओं के साथ
किये गए बलात्कार के खिलाफ जनता के पत्थर बरसाने की घटना हो या मणिपुर में सेना
द्वारा महिलाओं के यौन शोषण के खिलाफ मणिपुर की महिलाओं द्वारा नग्न होकर सेना
मुख्यालय के समक्ष प्रदर्शन या महाराष्ट्र के खैरलांजी में दलित महिला के बलात्कार
और हत्या के विरुद्ध चला संघर्ष!
बेशक, कईयों के लिए दिल्ली के ये वर्तमान प्रदर्शन बलात्कार
और क्रूरता की इन घटनाओं के लिए एक विलंबित प्रतिक्रिया हो सकते है| हालाँकि, कई अन्य लोगो के लिए घटना की असुविधाजनक निकटता (कि यह बलात्कार
देश की राजधानी में घटित हुआ और शायद किसी के साथ भी हो सकता है) ने भी प्रेरणा का
काम किया| इसके अलावा, कुछ लोग इस बात से परेशान दिखे कि
स्वयंस्फूर्त जन पहलकदमियों को राजनीतिक अवसरवादियों ने अपनी गिरफ्त में ले लिया| नकली भगत सिंह क्रांति सेना (जिसका भगत की प्रगतिशील विचारधारा और क्रांति से
कोई सम्बन्ध नहीं ) से लेकर शिवसेना कार्यकर्त्ता ,स्त्री विरोधी 'बाबा ',सरकारी और विदेशी
पैसे से चलने वाले भ्रष्टाचार विरोधी 'सिपाही' और दंगाइयों और बलात्कारियों की पार्टियों से
लेकर सभी तरह के दलालों ने आम जनता के गुस्से की आड़ में अपने स्वार्थों की पूर्ति
की| कई लोगो ने मीडिया के दोगलेपन को भी बखूबी उजागर किया| जो मीडिया 'ईमानदारी ' से मौजूदा विरोध
प्रदर्शन को कवर कर रहा है वही महिलाओं को टीवी और अखबारों में यौन वस्त के रूप
में चित्रित कर मुनाफा कमाता है!
इन सब बातों की रोशनी में हमें इस तरह
के तत्वों से अपने संघर्ष और आन्दोलन को बचाये रखने की ज़रुरत है और यह समझने की
ज़रुरत हैं कि कौन इस संघर्ष के वास्तविक योद्धा है| साथ ही हमें
लम्बे दौर के लिए तैयारी करनी चाहिए ताकि अगली बार इस तरह की गलत ताकते हमारे
संघर्षो को गलत दिशा न दे सके बल्कि हम उन्हें विचारधारात्मक तैयारी और सांगठनिक
प्रतिरोध दोनों के द्वारा पछाड़ कर बाहर कर सके|
हमें यह बात साफ तौर पर समझने की ज़रुरत
है कि किसी भी आन्दोलन और जन पहलकदमी में पूरी तरह से एक शुद्ध क्षेत्र अर्थात ऐसे
लोग जो सोचते है कि उनकी परिचित या रिश्तेदार महिला की मुक्ति सभी महिलाओं की
सुरक्षा और मुक्ति में ही निहित है, नहीं पा सकते| सामान्य पुरुषवादी नज़रिया है कि
अपने घर की औरत की रक्षा की जाये लेकिन दूसरी औरतों को इस्तेमाल की चीज समझा जाये| यही
वजह है कि धरने-प्रदर्शन की बहुत सी जगहों पर महिला प्रदर्शनकारिओं को पुरुष
प्रदर्शनकारिओं के हाथों छेड़-छाड़ और यौन उत्पीड़न का सामना करना पड़ा| अभी हाल ही
में घटी एक घटना पुरुषवादी सोच के दोगलेपन को उजागर करती है जिसमे एक फैक्ट्री में
काम करने वाली मज़दूर महिला को एक ऐसे व्यक्ति के हाथों बलात्कार का शिकार होना पड़ा
जिसकी अपनी बेटी कुछ समय पहले बलात्कार का शिकार हुई थी( 19 दिसम्बर 2012 के
अखबारों में आई शाहदरा के निकट वेलकम इलाके की घटना)|
ये सभी बातें हमें उस मानसिकता
और परवरिश के सवाल की ओर ले जाती है जो महिलाओं के प्रति ग़ैरबराबरी और हिंसा को
बढावा देती है| आज हमें सभी विषमताओं से संघर्ष करने की ज़रुरत है चाहे वो आईटी
एक्ट की धारा 66A हो जो हमें इन्टरनेट पर प्रतिरोध करने से रोकती है,पुलिस
द्वारा सड़कों और मेट्रो को ब्लॉक् करना, आंसू गैस,पानी की बौछारे, धारा 144
इत्यादि जो हमारे आक्रोश की अभिव्यक्तियों को सड़कों पर आने से रोकते हैं|
आज समय की मांग है कि ठंडे दिमाग से ठोस परिस्थितियों का विश्लेषण किया
जाये और ठोस मांगे सामने रखीं जाये जो ज़रूरी और तर्कसंगत हों| हमारा नज़रिया इस बात
की भी मांग करता है कि हम तात्कालिक घटना से ऊपर उठकर सोचें जो मूल समस्या का
लक्षण मात्र है और मूल समस्या की ओर अपना ध्यान केन्द्रित करें-एक समस्या जो
वर्तमान घटना और ‘न्याय दिलाने’ के नाम पर छोटे-मोटे सुधारों को बार बार पैदा
करेगी| हम इस पुरानी कहावत को भूले बिना कि “सब कुछ बदले बिना हम कुछ भी नहीं बदल सकते” इस समस्या से लड़ने के वास्तविक उद्देश्य से और इसे जड़ से
उखाड़ फेंकने के लिए ठोस मांगो का एक चार्टर सामने रख रहे हैं
इस
बात में कोई संदेह नहीं कि यौन हिंसा के ख़िलाफ़ हमारा सबसे मज़बूत हथियार एक निरंतर
चलने वाला जन आन्दोलन है| बेशक, मांगों की निम्नलिखित सूची तभी हकीकत बनेगी जब देश
भर की महिलायें प्रगतिशील और बराबरी के लिए लड़ने वाले महिला संगठनों के साथ जुड़कर
और उनका हिस्सा बनकर संगठित होंगी और महिला शोषण और उत्पीड़न के सव्वल पर एक
बहु-आयामी और लगातार चलने वाला संघर्ष छेड़ेगी|
अतः हम सभी महिलाओं और पुरुषों से अपील करते हैं की वे प्रगतिशील और
जनतांत्रिक संगठनों का हिस्सा बने ताकि इन प्रदर्शनों के ठंडे पड़ जाने के बाद हम
फिर से रोजमर्रा की जिंदगी में न लौट पड़े बल्कि सभी के लिए न्याय और बराबरी पर
टिके समाज की स्थापना के लिए निरंतर संघर्ष ज़ारी रखें| इन सब बातों की रोशनी में
नीचे लिखी बातें न सिर्फ राज्य से हमारी मांगें हैं बल्कि समाज में हमारे हिस्से
का भी दावा भी है|
हमारा मांग-पत्र चार्टर
1. परिवहन के सुरक्षित और पर्याप्त सार्वजानिक साधन उपलब्ध करायें जायें| दिल्ली
में ही 5000 से अधिक बसों की कमी है|
इससे बसों में भीड़ और महिला यात्रियों के यौन उत्पीड़न के लिए माहौल बनता है|
2. परिवहन के सभी सार्वजनिक साधनों( बसों
और ऑटो रिक्शा) की निगरानी की जानी चाहिए| हर वाहन एक ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (जी
पी एस ) से जुड़ा हुआ होना चाहिएं ताकि उसकी गतिविधियों पर यातायात पुलिस द्वारा
नज़र रखी जा सके!
3. डीटीसी, क्लस्टर बसों, बेस्ट,शहर और राज्य परिवहन की
बसों, ऑटो रिक्शा, ग्रामीण सेवा में काम कर रहे कर्मचारियों को सार्वजानिक परिवहन
साधन बिल्ला पहनना चाहिए!
4. बस कंडक्टरों की भविष्य की भर्ती में महिलाओं को
प्राथमिकता दी जानी चाहिए!
5. किसी भी अपंजीकृत पर्यटन/यात्रा एजेंसी को अपने
निजी वाहनों को चलाने की अनुमति नही दी जनि चाहिए! इसके आलावा इन निजी पर्यटन
एजेंसियों में काम कर रहे कर्मियों की उचित निगरानी होनी चाहिए!
6. असुरक्षित निजी वाहनों पर पूर्ण प्रतिबंध!
7. दिल्ली मेट्रो ट्रेन की आवाजाही बढ़ायी जाये ताकि
भीड़ और महिलाओं के यौन उत्पीडन की गुंजाइश को कम किया जा सके1 मेट्रो ट्रेन रत भर
चलाई जानी चाहिए!
8. विशेष रूप से रंगे शीशे, अस्पष्ट / छोटे लिखित
नम्बर प्लेट और महिला यात्रियों को परेशान करने के उद्देश्य से ज़ोर से संगीत बजाना
और ज़ोर से आवाज़ लगाना इत्यादि यातायात नियमों के उल्लंघन के लिए कठोर सजा!
9. रात में चलने वाले वाहनों की ठीक से निगरानी की
जानी चाहिए!
10. ‘महिला विशेष’ बसों की संख्या में बढोत्तरी और
साथ ही इन बसों की रात्रि सेवा भी शुरू की जायें!
11. किसी भी ऑटो या टैक्सी को यात्रियों को मना करने
की अनुमति नहीं होनी चाहिए! परिवहन के इन साधनों पर लगने वाली लाईसेंस फीस और अन्य
शुल्क कम से कम रखा जाना चाहिए ताकि यात्री किराया कम रखा जा सके! टैक्सी और ऑटो
की बहुसंख्या पर मुट्टीभर संगठित माफिया का कब्ज़ा है! इस तरह के संगठित माफिया का
कब्जा हैं! इस तरह के संगठित माफिया का पर्दाफाश होना चाहिए और इनके स्थान पर ऑटो
कर्मियों की अपनी यूनियनों को मान्यता दी जानी चाहिए!
12. रेलवे में विशेष महिला सुरक्षा सेलों की स्थापना
की जाए! ट्रेनों के सभी डिब्बों में आपातकालीन अलार्म और महिला यात्रियों की
सुरक्षा के लिए अन्य प्रावधान होना चाहिए!
13. सरकारी स्कूल के छात्रों के लिए अलग स्कूल बसों
का प्रावधान ताकि कुछ विशेष रूटों पर ज्यादा भीड़ न हो!
14. सड़को पर उचित और पर्याप्त प्रकाश व्यवस्था!
15. रात्रि और जल्द सुबह की शिफ्टों में काम करने
वाली महिला कर्मियों के लिए कम्पनी की परिवहन सुविधा प्रदान की जाये!
16. अकेली कामकाजी महिलाओं के लिए सुरक्षित आवास
उपलब्ध कराने के लिए सस्ते वर्किंग वुमेन होस्टलों की संख्या बढ़ाई जाये!
17. बाहर से पढ़ाने आयी सभी कालेज छात्राओं को उनके
संबंधित शिक्षण संस्थानों द्वारा सस्ते और सुरक्षित आवास प्रदान किये जाये ताकि ये
छात्राएं निजी मकान मालिकों के उत्पीड़न से बच सकें|
18. बलात्कार और बलात्कार-क्रूरता-हत्या के बीच सजा
की डिग्री में एक स्पष्ट अंतर होना चाहिए! ‘बलात्कार-क्रूरता-हत्या’ का अपराधी
अधिक गंभीर रूप से दंडित किया जाना चाहिए! बलात्कार के दो प्रकारों/रूपों के बीच
सजा की मात्रा स्पष्ट रूप से अलग की जानी चाहिए| मृत्यु दंड एक तर्कसंगत विकल्प
नही है क्योंकि इससे इस बात का खतरा पैदा होगा कि बलात्कारी पीड़िता की हत्या करने
की कोशिश करे ताकि सबूत मिटा कर मृत्युदंड से बच सके| एक ऐसा कानून होना चाहिए जो
चोट, क्षति, अपमान की अवधारणा पर आधारित यौन हमले/हिंसा की वर्गीकृत प्रकृति को
मान्यता दे| बलात्कारी को मृत्युदंड देने का तर्क इस पुरुषवादी सोच से ग्रस्त है
कि बलात्कार होना मौत से भी बदत्तर है| इस सम्बन्ध में सबसे महत्वपूर्ण उपाय दंड
की निश्चितता है न कि दंड के रूप की कठोरता|
19. महिलाओं पर हिंसा के मामलों की सुनवाई के लिए
अलग से फ़ास्ट ट्रैक अदालतों का गठन किया जाना चाहिए| मौजूदा 16000 अदालतों के
अतिरिक्त 25000 से अधिक अदालतों की आवश्यकता हैं| बलात्कार के सभी लंबित मामलों
(पूरे भारत में एक लाख, दिल्ली में एक हजार) को विशेष रूप से गठित अदालतों द्वारा
सौ दिनों के भीतर हल किया जाना चाहिए|
20. बलात्कार पीड़िता का मेडिकल परिक्षण जहाँ तक संभव
हो महिला डॉक्टरों द्वारा किया जाना चाहिए और मेडिकल परिक्षण के लिए पीड़िता की
इच्छा के विरुद्ध कोई भी पुरातन तरीका नही अपनाया जाना चाहिए|
21. देश के सभी जिलों में फॉरेंसिक परिक्षण की सुविधा होनी
चाहिए|
22. सभी बलात्कार पीड़ितों को आवश्यक मनोवैज्ञानिक
परामर्श प्रदान किया जाना चाहिए|
23. पर्याप्त रोजगार के अवसरों सहित पीड़ितों के
पुनर्वास के लिए सभी आवश्यक कदा उठाये
जाने चाहिये|
24. बलात्कारी पर ये साबित करने का दायित्त्व होना
चाहिए कि वो निर्दोष है|
25. बलात्कार पीड़िता की गवाही
और पूछताछ की आड़ में उसका उत्पीड़न नहीं होना चाहिए|
26. जिन व्यक्तियों की बलात्कार के मामलों में
चार्जशीट दाखिल हो चुकी है, उन पर चुनाव
आयोग द्वारा सार्वजनिक पद के सभी चुनाव लड़ने पर प्रतिबन्ध लगा दिया जाना चाहिए|
27. विभिन्न अधीनस्थ और उच्च न्यायालयों में जजों की
खाली पडी सीटों को भरा जाये| ऐसा कानून पास किया जाये जिससे सभी न्यायालयों में
सुनवाई एक निर्वाचित जूरी के द्वारा हो|
28. यौन अपराधों के मामलों में पीड़ितों और गवाहों को
उचित सरक्षण दिया जाना चाहिये|
29. बलात्कार के मामलों की सुनवाई कैमरों की निगरानी
में और महिला जजों के द्वारा होनी चाहिये|
30. महिला हेल्पलाइन और अन्य आपातकालीन सेवाएं
चौबीसों घंटे उपलब्ध कराई जानी चाहिए और अच्छी तरह से विज्ञापन और प्रचार-प्रसार
करके लोगों को इन सेवाओं के बारे में बताया जाना चाहिए|
31. पीसीआर वैन पर नज़र रखने के लिए एक विशेष सतर्कता
टीम का निर्माण|
32. सभी पुलिस थानों में सीसीटीवी कैमरे लगाये जाने
चाहिए और दोषी पुलिस कर्मियों के ख़िलाफ़ सख्त कार्यवाही होनी चाहिए| सोनी सोरी
जिसके साथ पुलिस हिरासत में बलात्कार और उत्पीड़न किया गया जैसे मामलों की रोशनी
में यह एकदम ज़रूरी है| वह अभी भी छत्तीसगढ़ की एक जेल में सड़ रही है|
33. पुलिस बल में महिलाओं का अनुपात बढाया जाये|
वर्तमान में दिल्ली पुलिस में महिला अनुपात सामान्य से 6.5% कम है|
34. मुट्ठीभर पुलिस अधिकारिओं के लिये कुछ टोकन
कार्यशालाओं के बजाय पुलिस बल के प्रशिक्षण कर्यक्रम में जेंडर संवेदनशीलता पर
अनिवार्य पाठ्यक्रम शामिल किया जाए| हर साल पुलिस बल के ख़िलाफ़ मानव अधिकारों के
उल्लघंन की 80 हज़ार शिकायतें दर्ज कराई जाती है जिनमे से एक बड़ी संख्या में
महिलाओं के खिलाफ यौन अपराध करने से सम्बंधित है|
35. यौन अपराधों के पीड़ितों से जुड़े मामलों को देखने
के लिए पुरुष पुलिसकर्मी की नियुक्ति नहीं होनी चाहिए जैसे जांच अथवा पीड़िता को कोर्ट से लाने-ले जाने के
लिए सादी वर्दी में महिला पुलिसकर्मियों की नियुक्ति होनी चाहिए|
36. आम जनता और वीआईपी के बीच पुलिस का उचित वितरण
होना चाहिए| विशिष्ट व्यक्तियों की सुरक्षा में 50059 की भारी संख्या लगी हुई है जो
स्वीकृत संख्या की तुलना में 20 हज़ार अधिक है| अति विशिष्ट व्यक्तियों की सुरक्षा
और जनता के लोकतान्त्रिक आन्दोलनों को रोकने की बजाय इन पुलिसकर्मियों को आम जनता
की सेवा के लिए लगाया जाना चाहिए|
37. राष्ट्रीय महिला आयोग(NCW) की भूमिका और कामकाज का
सालाना ऑडिट होना चाहिए और उस लेखे-जोखे की रिपोर्ट सार्वजनिक की जानी चाहिए|
सत्तारुढ़ दलों के बीच ये प्रवृति है की इन पदों को भरते समय अपने चेले-चमचों को ही
पदों पर बैठाया जाता है| ये व्यवहार बंद होना चाहिए और सभी सार्वजनिक महत्त्व के
पदों के लिए लोकतान्त्रिक तरीके से स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव हने चाहिए ताकि
महिला आंदोलन में अपनी विश्वसनीयता और साख रखने वाले सही लोग इन पदों पर पहुँच सके
|
38. स्कूल और उच्च शिक्षा के पाठयक्रम में जेंडर
संवेदनशीलता को विषय के रूप में शामिल किया जाये|
39. जो धार्मिक ग्रन्थ और प्रथायें महिलाओं को नीचा
दिखाती हैं, ग़ैरबराबरी पैदा करती और बढाती हैं,समाज में नारी विरोधी दृष्टिकोण
पैदा करती हैं, उन पर बहस होनी चाहिए, उनका बहिष्कार होना चाहिए और उन पर
प्रतिबन्ध लगाया जाना चाहिए|
40. रात 8 बजे के बाद शराब की बिक्री पर पूर्ण
प्रतिबन्ध|
41. शराब की अवैध बिक्री बंद होनी चाहिए और उस के
लिए ज़िम्मेदार अपराधियों को कठोर सजा देनी चाहिए और सम्बंधित अफसरों पर भी कड़ी
कार्यवाही होनी चाहिए|
42. सार्वजनिक स्थलों पर शराब पीने पर गंभीर सजा|
43. देर रात शराब पीकर घूमने वाले पुरुषों की
निगरानी की जानी चाहिए और उन पर जुर्माना लगाना चाहिए और यदि वे महिलाओं की
सुरक्षा के लिए खतरा लगे तो उन्हें हिरासत में
लिया जाना चाहिए| शराब पीकर गुंडागर्दी,उपद्रव, हुडदंग करने वाले पुरुष और
पुरुषों के समूह देर रात काम से लौटने वाली महिलाओं के लिए अक्सर परेशानी का कारण
बनते हैं| इन सब चीज़ों को लेकर सख्त कानून बनने चाहिए और उन्हें कठोरता से लागू
किया जाना चाहिए, ताकि महिलाएं भय से मुक्त और सुरक्षित यात्रा कर सकें|
44. बार और पबों में देर रात तक शराब परोसने पर प्रतिबंध
लगना चाहिए|
45. यह सुनिश्चित किया जाये iकी प्राथमिकी (एफ आई
आर) तत्काल प्रभाव से दर्ज की जाये| यदि प्राथमिकी दर्द नहीं की जाती तो सम्बन्धित
पुलिस स्टेशन को प्राथमिकी दर्ज न करने का लिखित स्पष्टीकरण देना होगा| दलित,
अल्पसंख्यक और आदिवासियों की रिपोर्ट दर्ज न करना दंडनीय हो| राष्ट्रीय अपराध
रिकॉर्ड ब्यूरो की वर्ष 2011 की रिपोर्ट के अनुसार अपराध की 14618802 शिकायतों में
से दिल्ली पुलिस द्वारा मात्र 59249 मामलों में प्राथमिकी दर्ज की गई जोकि अपराध
की शिकायतों का 0.5% से भी कम है| यह दिल्ली में सभी अपराधों के प्रति दिल्ली पुलिस
की सामान्य उदासीनता को दर्शाता है| दिल्ली पुलिस की वर्ष 2010 की वार्षिक रिपोर्ट
के अनुसार क्राइम अगेंस्ट वूमेन(CAW) सेल द्वारा प्राप्त शिकायतों में से मात्र 11.88% मामलों
में ही रिपोर्ट दर्ज की गई| अपराधों के प्रति पुलिस की यह उदासीनता ही राज्य में
अपराधियों के बढते हौंसलों के लिए ज़िम्मेदार है| कहने की ज़रुरत नहीं कि यदि देश की
राजधानी का हाल ऐसा है तो देश के बाकी हिस्सों में क्या हाल होगा|
46. बलात्कार के मामलों में जल्द और कुशल जांच को
पक्का करने के लिए सभी आवश्यक कदम उठाये जाने चाहिए| वर्तमान में बलात्कार और अन्य
अपराधों के ज्यादातर दोषी आराम से छूट जाते है और खुले घूमते हैं| महिलाओं के
विरुद्ध अपराधों में सजा की दर वर्ष 2010 के 27.8% से घटकर वर्ष 2011 में 26.9% रह
गयी है| दिल्ली में हुए एक अध्ययन के अनुसार दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद बलात्कार
के दोषिओं ने सजा मिलने से पहले औसतन 4 बलात्कार किये हैं| यह आंकड़ा आपराधिक-न्याय
प्रणाली की विफलता को पूरी तरह उजागर करता है|
47. महिलाओं की सुरक्षा के सम्बन्ध में नियमित
अंतराल पर लेखा-जोखा होना चाहिए और स्थानीय महिला संगठनों और महिला छात्रावास
यूनियनों को इस प्रक्रिया में शामिल किया जाना चाहिए|
48. सभी ग्रामीण और शहरी इलाकों में पुलिस को
महिलाओं के प्रति जवाबदेह बनाया जाना चाहिए और इस उद्देश्य के लिए पुलिस और
महिलाओं के बीच नियमित संवाद आयोजित होने चाहिए|
49. किसी भी परिस्थिति में महिलाओं को रात के समय
पुलिस थानों में हिरासत में नहीं लिया जाना चाहिए| हर पुलिस स्टेशन में महिला
पुलिसकर्मी की नियुक्ति होनी चाहिए|
50. महिला सैन्य कर्मियों का यौन उत्पीड़न रोकने,सेना
में महिला विरोधी संस्कृति पर लगाम लगाने और सेना द्वारा आम महिलाओं के विरुद्ध
यौन अपराधों को रोकने के लिए सेना के भीतर एक विशेष क्राइम अगेंस्ट वूमेन(CAW) सेल का गठन किया जाना
चाहिए|
51. सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम (AFSPA) और नागरिक सुरक्षा अधिनियम
जिनका इस्तेमाल सेना औए पुलिस द्वारा, क्रमशः, महिलाओं पर अत्याचार करने के लिए
किया किया जा रहा है, उन्हें तत्काल प्रभाव से निरस्त किया जाये| कुनान-पुष्पोर
घटना( 23 फरवरी 1991) जिसमे चौथी राजपूताना रायफल्स के सैनिकों द्वारा एक ही रात
में 53 महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया, मई 2009 में शोंपिया(कश्मीर) में नीलोफ़र
जान और आसिया जान का सीआरपीएफ के जवानों द्वारा अपहरण, सामूहिक बलात्कार और हत्या,
वर्ष 2004 में 17वीं आसाम रायफल्स के जवानों द्वारा थाग्जम मनोरमा की
यातना,बलात्कार के बाद हत्या, ये ऐसे कुछ विशेष रूप से नृशंस मामले है जिनमें
सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम (AFSPA) और नागरिक सुरक्षा
अधिनियम के कारण सेना को प्राप्त सुरक्षा के कारण इन मामलों में दोषी सैन्य
कर्मियों को सजा नहीं मिल सकी और पीड़ितों को उचित न्याय नहीं मिल पाया|
52. मनोरमा बलात्कार मामले में सी.उपेन्द्र जाँच
आयोग (2004) की रिपोर्ट को सार्वजनिक किया जाना चाहिए!
53. सेना/अर्धसैनिक बल/पुलिसकर्मियों द्वारा महिलाओं
के प्रति किये गए अपराधों के मामलों को देखने के लिए एक स्वतंत्र जाँच आयोग का गठन
होना चाहिए!
54. जेल, पुलिस स्टेशन, कॉन्वेंट, मंदिरों, मानसिक
चिकित्सालयों, पागलखानों, गैर सरकारी संगठनों (एनजीओ) और अस्पतालों में होने वाले
बलात्कारों को संगीन अपराध मानकर गंभीर और कठोर सजा द्वारा दण्डित किया जाना
चाहिए|
55. बच्चों की सुरक्षा के लिए विशेष सुरक्षा टास्क
फ़ोर्स का गठन और स्कूलों, अनाथालयों का नियमित अवधि पर निरीक्षण|
56. सभी प्ले स्कूलों का ठीक ढंग से संचालन हो और उन
पर उचित निगरानी रखी जाए|
57. खतरनाक पदार्थों जैसे ऐसिड जिनका इस्तेमाल
महिलाओं के खिलाफ हिंसा करने के लिए किया जाता हैं, की बिक्री पर तुरंत प्रतिबंध
लगाया जाना चाहिए|
58. जो एजेंसिया घरेलू श्रमिक ( नौकर,नौकरानी)
प्रदान करती हैं उन्हें प्रतिबंधित करना चाहिए और एजेंसियों का कार्यभार राज्य सरकार द्वारा
संचालित रोजगार कार्यालयों को अपने हाथों में ले लेना चाहिए|
59. अख़बारों, पत्रिकाओं और मीडिया के अन्य सभी रूपों
में विज्ञापनों में महिलाओं का यौन वस्तु के रूप में चित्रण पूर्णत: प्रतिबंधित
होना चाहिए और ऐसा करने वाले को दण्डित किया जाये|
60. अशलील सिनेमा और साहित्य पर पूर्ण प्रतिबंध और
महिलाओं की स्थिति गिराने वाली, महिला विरोधी, महिलाओं के प्रति यौन हिंसा को
बढ़ावा देने वाली फिल्में पूर्णत: प्रतिबंधित हो|
61. फैशन शो, सौन्दर्य प्रतियोगिता जो महिलाओं के
शरीर को यौन वस्तु (सेक्स ऑब्जेक्ट) के रूप में चित्रित करते हैं, प्रतिबंधित होने
चाहिए|
62. त्योहारों के दौरान होने वाली गुंडागर्दी पर
गंभीर सजा दी जानी चाहिए और इसे रोकने के उपायों जैसे होली से पहले गुब्बारे बेचने
पर प्रतिबंध, को गंभीरता से लागू करना चाहिए|
63. सभी कार्यस्थलों पर महिलाओं की उचित सुरक्षा
सुनिश्चित करें| औद्योगिक क्षेत्रों के पुलिस थानों में क्राइम अगेंस्ट वूमेन (CAW) सेल का गठन और
फैक्ट्रियों के भीतर ‘यौन हिंसा विरोधी’ समितियों का गठन जिसमें उस फैक्ट्री की
ट्रेड यूनियन के प्रतिनिधि भी शामिल हों|
64. हवाई अड्डों, पब, ऑटो एक्सपो, रेस्तरां आदि में
महिला कर्मचारिओं को तंग कपड़े पहनने के लिए मजबूर प्रतिबन्धित
हो| वर्दी में कोई भी बदलाव सिर्फ कर्मचारी यूनियन से चर्चा और उसकी सहमती के बाद
ही किया जाना चाहिए अथवा जहाँ यूनियन नहीं है, वहां कर्मचारिओं की प्रतिनिधि सभा
की सहमति के बाद ही ये बदलाव होने चाहिए|
65. वैवाहिक जीवन में बलात्कार एक दंडनीय अपराध
घोषित किया जाये|
66. पैसे देकर किये गए बलात्कार(वेश्यावृति) को
पूर्णतः समाप्त किया जाये और वेश्यावृति की शिकार महिलाओं के उचित पुनर्वास की
व्यवस्था की जाये| वेश्यावृति से जुड़ी महिलाओं के साथ हुई यौन हिंसा की शिकायतों
को तुरंत दर्ज किया जाना चाहिए|
67. महिलाओं और बच्चों की तस्करी को सभी रूपों में
निषिद्ध किया जाना चाहिए और दोषिओं को कड़ी सजा दी जाये|
68. चूँकि बहुत से मामलों में महिलाओं और बच्चों का
घर की चारदीवारी के भीतर अपने परिचितों के द्वारा ही यौन शोषण होता है इसलिए जो
महिलाएं घर छोड़ने की इच्छुक हैं और स्वतंत्र रूप से जीवन जीना चाहती है, उनके लिए
सरकार को आवास, वित्तीय सहायता और रोजगार के अवसरों की वैकल्पिक व्यवस्था का विकास
करना चाहिए| विक्लांग महिलाओं की कठिनाईयों और ज़रूरतों की और विशेष ध्यान दिया
जाना चाहिए|
69. सभी महिलाओं को सरकार द्वारा नौकरी के अवसर
प्रदान करने चाहिए ताकि अपने परिवार के पुरुष सदस्यों पर उनकी निर्भरता समाप्त हो
सके और विवाद या झगड़े की स्थिति में अपने जीवन को स्वतंत्र रूप से चला सके|
70. खाप पंचायतों, जातिवादी-साम्प्रदायिक संगठनों और
ऐसे तमाम संगठनों को पूर्णतः प्रतिबंधित करना चाहिए जो महिलाओं के प्रति भेदभाव और
ग़ैरबराबरी की सोच पैदा करते और बढ़ाते हैं|
71. झूठी शान के नाम पर होने वाली ऑनर किलिंग के
दोषियों और जो ऑनर किलिंग को उकसाते हैं, बढावा देते हैं, इसके पक्ष में माहौल
बनाते हैं उन सभी को कठोर सजा देनी चाहिए|
जारीकर्ता: माया जॉन
संघर्षशील महिला केंद्र (CSW)
संघर्ष में साथी
मज़दूर एकता केन्द्र(MEK), नेत्रहीन कामगार यूनियन, आनंद पर्वत औद्योगिक मज़दूर संघर्ष समिति,
क्रांतिकारी युवा संगठन(KYS)-दिल्ली, , क्रांतिकारी युवा संगठन(KYS)-हरियाणा, निर्माण मज़दूर संघर्ष समिति(NMSS), घर बचाओ मोर्चा-बलजीत नगर, महिला पंचायत-पंजाबी
बस्ती,आईटीआई छात्र एकता
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