Wednesday, May 1, 2019

मजदूर दिवस 2019



मजदूर एकता जिंदाबाद!                                                                                    इंकलाब जिंदाबाद!

मजदूर दिवस 2019
मई दिवस के शहीदों को याद करेंगे, जुल्म नहीं बर्दाश्त करेंगे!
मजदूर अपने सभी अधिकारों को हासिल करने के लिए मजदूर यूनियन से जुड़े!



साथियों,
           1 मई का दिन मजदूरों के जीवन में एक ऐतिहासिक महत्त्व रखता है| इसे मई दिवस कहिये या मजदूर दिवस, ये दिन मजदूरों के लिए किसी पर्व-त्यौहार से कम नहीं है| 1 मई के दिन ही आज से 132 साल पहले अमेरिका के शिकागो शहर के मजदूरों ने अपनी एकता और संघर्ष से 8 घंटे काम का नियम लागू करवाया था और उसके बाद इस संघर्ष से प्रेरणा लेकर तमाम देशों के मजदूरों ने 8 घंटे काम का नियम और वेतन बढ़ाने को लेकर संघर्ष किया और जीत हासिल की| और इस तरह से यह दिन न सिर्फ हमारी जीत का बल्कि हमारे संघर्ष और एकता का भी प्रतीक है|

          आज हम देख रहे हैं कि मजदूरों से उनके वे तमाम अधिकार छीने जा रहे हैं, जो उन्होंने संघर्ष से लड़कर हासिल किये थे| शहरों में मजदूरों के ऊपर शोषण और दमन बढ़ता जा रहा है| छटनी, तालाबंदी के कारण लाखों मजदूरों को बेरोजगार होना पड़ रहा है| हर जगह ठेकेदारी व्यवस्था लागू है जिसके तहत मजदूरों को 12-12 घंटे खटने के बाद भी 5-7 हजार रुपये महीने से ज्यादा नहीं मिलता और ठेकेदार या मालिक का जब मन करता है वो मजदूर को काम से हटा देता है| कई मजदूरों का दस-दस साल काम करने पर भी वेतन वही है और मालिक का मुनाफा लगातार बढ़ रहा है| हमें मालिक और उसके मैनेजरों से ऐसे व्यवहार करना पड़ता है जैसे वे धरती पर भगवान के अवतार हों और ये मालिक तथा मैनेजर मजदूरों के साथ हमेशा बदतमीजी से व्यवहार करते हैं| मजदूर महिलाओं को तो और भी अपमानजनक व्यवहार सहना पड़ता है| एक तरफ तो मालिक को सरकार, पुलिस, लेबर अधिकारी सभी का संरक्षण प्राप्त है, वहीं मजदूरों की जायज से जायज मांग पर भी ध्यान नहीं दिया जाता| दुर्घटना, चोट, अंग-भंग होने पर छोटा-मोटा मुआवजा देकर मामला रफा-दफा कर दिया जाता है| इस बढती महंगाई में हर चीज़ की कीमत आसमान छू रही है| आटा, चावल, दाल हर चीज़ महंगी होती जा रही है| बस एक चीज़ सस्ती है, वो है मजदूर की मेहनत| हर चीज़ का दाम बढ़ता है पर मजदूर की मजदूरी नहीं बढती|

          अब तो छोटी-मोटी परचून की दुकान खोलना या रेहड़ी-पटरी लगाना भी मुश्किल होता जा रहा है| अब जब टाटा, बिड़ला और अम्बानी जैसे बड़े-बड़े पूंजीपति दुकानें और शॉपिंग मॉल खोल रहे हैं तो सरकार को गरीब की रेहड़ी-पटरी और ठेला गैर-कानूनी लगने लगा है| बेशर्मी की हद देखिये कि अमीर आदमी जहाँ चाहे वहां अपनी कार खड़ी कर सकता है और रास्ता रोक सकता है लेकिन गरीब आदमी ठेला लगाता है या झुग्गी डालता है तो पुलिस, एम.सी.डी. और डी.डी.ए. वाले तुरंत हटाने आ जाते हैं| हकीक़त तो यह है कि आज कानून भी अमीरों के हाथ की कठपुतली बन चुका है, जिसका एकमात्र काम रेहड़ी-पटरी वालों और छोटे दूकानदरों की रोजी-रोटी छीनना और गरीबों की बस्तियों पर बुलडोज़र चलाना ही रह गया है|

          अभी पिछले कुछ सालों में जिस तरह से पंजाबी बस्ती के निकट गायत्री कॉलोनी की झुग्गियां उजाड़ी गई, क्या हम उसे भूल सकते हैं? पंजाबी बस्ती के पास की ये झुग्गियां गरीबों ने इसलिए बसाई क्योंकि लाखों का मकान खरीदना या हर महीने 2500-3000 रुपये मकान का किराया देना, 5-7 हजार रुपये कमाने वाले मजदूर आदमी के बस की बात नहीं| अगर ये सरकार गरीबों को घर नहीं दे सकती तो उन्हें इसे उजाड़ने का हक क्या है? आखिर डी.डी.ए. और सरकार हमें इस जमीन से क्यों उजाड़ रही है? दरअसल वो इस जमीन को रिलायंस या टाटा जैसे किसी पूंजीपति को मॉल वगैराह बनाने के लिए बेचेगी या यहाँ अमीरों को फ्लैट बना कर बेचेगी| यह लडाई सीधे-सीधे अमीर और गरीब के बीच है और अब देखना यह है कि डी.डी.ए., सरकार और कानून जनता के साथ है या अमीरों के साथ| सिर्फ घर का सवाल नहीं बल्कि ठेकेदारी, छटनी, कम वेतन, अपमान, दुर्घटना, चोट, ज्यादा किराया, महंगी दवाईयां, बच्चों के लिए शिक्षा व पानी की कमी जैसी दिक्कतों से भी हम सब परेशान और गुस्से में हैं| मजदूर वर्ग की महिलाओं को तो दोहरे शोषण का शिकार होना पड़ता है| मजदूर बस्तियों में बिजली, रोशनी, शौचालय, पानी इत्यादि की कमी के कारण महिलाओं को आये दिन अपमान और शारीरिक हिंसा का शिकार होना पड़ता है| और तो और यदि कोई मजदूर महिला शारीरिक शोषण का शिकार होती है तो पुलिस और प्रशासन उस पर कार्यवाही करना तो दूर उस पर शिकायत तक दर्ज नहीं करते| साथियों ये बात दोहराने की आवश्यकता नहीं है कि सरकार, कानून व्यवस्था और सुरक्षा इस पूंजीवादी समाज में केवल अमीरों के लिए है|

          पर इस परेशानी और गुस्से का क्या करें? साथियों बात सीधी सी है| हर आदमी अपनी जिंदगी अच्छी करना चाहता है और जब वह देखता है कि अकेला वह कुछ नहीं कर सकता, तब वह संगठन बनाता है| अकेला मजदूर कुछ नहीं कर सकता, फिर बस एक ही रास्ता है कि मजदूरों के मुद्दों को लेकर संघर्ष कर रहे जुझारू संगठनों से जुड़ना होगा| संगठन के बिना व्यक्ति कुछ नहीं, संगठन की ताकत से ही मालिक से लड़कर अपना हक हासिल किया जा सकता है|

          आज एक बार फिर हम ऐतिहासिक मई दिवस का पैगाम लेकर आपके पास आये हैं| इस दिन दुनिया भर के मजदूर, मालिकों(पूंजीपतियों) के खिलाफ एकत्रित होकर मेहनतकशों की लड़ाई तेज करने की कसमें लेते हैं| मजदूर आन्दोलन के क्रांतिकारी नेताओं और शहीदों ने एक नए समाज का सपना देखा था, जिसमें मजदूरों को शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और अपनी जिंदगी को सुखी बनाने के लिए तमाम सुविधाएं मिलें| आज इस संकट के दौर में देश के हर कोनों से विरोध और संघर्ष की आवाजें उठ रही हैं| आज वक़्त आ गया है कि हम अपने मोहल्लों, फैक्ट्रियों, बस्तियों में मालिकों(पूंजीपतियों) और उनकी दलाल सरकार तथा कानून व्यवस्था के खिलाफ एकता बनाकर अपने मुद्दों पर लड़ने के लिए आंदोलनों को तेज करें| मई दिवस का इतिहास हमें यही सिखाता है कि समाज हमेशा बदलता रहता है, जरूरत है सही सूझबूझ और संगठित रूप से कार्य करने की| इसलिए आईये अपने हक के लिए लड़ते हुए न्याय और बराबरी पर आधारित समाज के निर्माण के लिए इस संगठन और आन्दोलन का हिस्सा बनें|


हमारी मांगें-

  1. सरकार सुनिश्चित करे की सभी काम की जगहों में मजदूरों को सरकार द्वारा तय न्यूनतम मजदूरी से कम
  2. मजदूरी न दी जाए। न्यूनतम मजदूरी से कम मजदूरी देने वालों पर कड़ी कानूनी कार्यवाई हो।
  3. किसी भी काम में मजदूरों को 8 घंटे से ज्यादा काम करवाना गैरकानूनी घोषित किया जाये।
  4. सभी छोटी फैक्ट्रियों में मजदूरों को अपनी यूनियन बनाने का अधिकार मिले।
  5. सरकारी क्षेत्रों की तरह प्राइवेट कंपनियों में कार्यरत मजदूरों को अनिवार्य साप्ताहिक छुट्टी हासिल हो।
  6. कठिन क्षेत्रों में काम कर रहे मजदूरों के लिए जरूरी सुरक्षा उपकरण का इंतजाम अनिवार्य रूप से किया जाये। उल्लंघन करने वाली प्राइवेट कंपनियों और मालिकों पर कानूनी कार्यवाई हो।
  7. सभी काम की जगहों (फैक्ट्री इत्यादि) में मजदूरों के लिए प्राथमिक उपचार की व्यवस्था की जाये।
  8. सभी छोटी फैक्ट्रियों में काम कर रहे सभी मजदूरों का ई.एस.आई.सी कार्ड (ESIC Card) बनवाया जाए|
  9. काम की जगहों में मजदूरों के लिए शौचालय, साफ पीने के पानी का इंतजाम हो।
  10. मजदूरों के लिए कैंटीन का इन्तेजाम किया जाये, जहाँ सस्ते दाम में भोजन उपलब्ध हो।
  11. काम के दौरान दुर्घटना होने पर इलाज का सारा खर्च मालिक वहन करे।
  12. महिला कामगारों की सुरक्षा के लिए जरूरी इंतजाम करना अनिवार्य किया जाए।
  13. अन्य राज्यों से काम करने आये मजदूरों के लिए रहने का उचित प्रबंध किया जाए।
  14. निजी क्षेत्रों में मजदूरों की स्थाई नियुक्ति के लिए कानून बने।
  15. समान काम-समान वेतन का कानून लाया जाये।
  16. महिला कामगार के बच्चों की देखभाल और सुरक्षा के लिए अनिवार्य रूप से शिशुगृह का निर्माण हो।


मजदूर एकता केंद्र (MEK)



समर्थन में सहयोगी संगठन: घर बचाओ मोर्चा, क्रांतिकारी युवा संगठन (KYS), संघर्षशील महिला केंद्र (CSW), घरेलू कामगार यूनियन (GKU), दिल्ली निर्माण मजदूर संघर्ष समीति, आनन्द पर्वत औद्योगिक मजदूर संघर्ष समीति, नेत्रहीन कामगार यूनियन (BWU), नेफिस

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