Sunday, January 27, 2013

दिल्ली विश्वविद्यालय के पत्राचार के छात्रों द्वारा शैक्षणिक रंगभेद की चुनौती


                     प्रेस विज्ञप्ति
दिल्ली विश्वविद्यालय के पत्राचार के छात्रों द्वारा शैक्षणिक रंगभेद की चुनौती !
नियमित शिक्षा से वंचित रखने वाली भेदभावपूर्ण और गलत शिक्षा नीतियों के         ख़िलाफ़ पत्राचार छात्रों का खुला आह्वान
दिल्ली विश्वविद्यालय के पत्राचार के छात्रों द्वारा एक अभियान की शुरुआत की गई है जिसकी परिणिती 21 जनवरी 2013 को एक रैली के रूप में हुई| हम दिल्ली विश्वविद्यालय और भारतीय राज्य की उन भेदभावपूर्ण शैक्षणिक नीतियों के ख़िलाफ़ ये अभियान चला रहे हैं जो पत्राचार(school of open learning, SOL) के छात्रों के ख़िलाफ़ अपनाई जा रही हैं| हमारे विरोध-प्रदर्शन के बाद हम अपनी मांगों का एक ज्ञापन तत्काल और प्रभावशाली कार्यवाही की मांग करते हुए उप-कुलपति( Vice-chancellor,VC) को सौपेंगे|
आम धारणा के विपरीत, पत्राचार छात्र समुदाय केवल उन छात्रों का समूह नहीं है जो पार्ट-टाइम पढाई करते हैं| ये एक मिथक है जो शासक वर्ग द्वारा अपनी दोहरी शिक्षा प्रणाली की घृणित वास्तविकता पर पर्दा डालने के लिए फैलाया गया है| सच्चाई यह है कि पत्राचार माध्यम से पढाई करने वाले ज्यादातर छात्र वो हैं जो रेगुलर कॉलेज में पढ़ना चाहते थे परन्तु जिन्हें दाखिला नहीं मिला| बेहद शर्म और दुःख का विषय है कि जहाँ नियमित कॉलेजों में करीब 1 लाख छात्र शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं, 4 लाख से ज्यादा छात्र उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए पत्राचार माध्यम से पढने को मजबूर हैं| इसका अर्थ है कि नियमित कॉलेज में 1 छात्र के दाखिले के मुकाबले, पत्राचार माध्यम में 4 छात्रों का दाखिला होता है| इससे जुड़ा एक और महत्वपूर्ण तथ्य ये है की पिछले 30 सालों में उच्च शिक्षा प्रदान करने के लिए शायद ही कोई नया कॉलेज बनाया गया हो, ये सरकार द्वारा  सभी को गुणवत्ता आधारित उच्च शिक्षा प्रदान करने के प्रति लापरवाही को साफ़ तौर पर प्रकट करता है| हमारे राज्य द्वारा वृहद और उच्च स्तरीय शैक्षिक ढांचे के निर्माण की बड़ी-बड़ी बातें की जाते है, परन्तु सच्चाई यह है कि आज हमारे यहाँ एक अति सम्भ्रान्तवादी(elitist) विश्वविद्यालय व्यवस्था है जो अपने संभ्रांतवाद में गौरव महसूस करती है | नियमित कॉलेजों में सीटों की भरी कमी का सीधा मतलब है हर साल कट-ऑफ़ में आसमान छूती बढ़ोतरी| यह कट-ऑफ़ सिस्टम इस हद तक हास्यास्पद हो चुका है कि 75 % अंक लाने के बाद भी एक छात्र को अपनी सीट सुरक्षित करने के लिए संघर्ष करना पड़ता है| स्पष्ट है कि हमारी शिक्षा व्यवस्था का संचालन करने वाले प्रशासन छटनी के तर्क से चल रहे हैं, यानी कोई छात्र सिर्फ इस आधार पर दाखिला नही पा सकता है कि वो बेहतर है बल्कि उसे ये साबित करना पड़ेगा की वो बाकी सब से अव्वल है| सीटों की कमी के कारण छटनी का जो ये तर्क चल रहा है उससे छात्र समुदाय अत्यधिक दबाव, मानसिक तनाव, कमजोर आत्मविश्वास और कभी-कभी आत्महत्या के स्तर तक पहुँच जाता है| आज ‘हर कीमत पर सफलता, बल्कि औरों की कीमत पर सफलता’ ही छात्रों के लिए एक एकमात्र सर्वोत्तम गुण है, यह एक ऐसा रव्वैया है जो समानता, पारस्परिक सम्मान और प्रेम जैसे मानवीय गुणों पर आधारित एक सौहार्दपूर्ण समाज के लिए बिल्कुल उपयुक्त नही है|
बेशक, कट-ऑफ़ के माध्यम से छटनी की यह व्यवस्था यह मानकर चलती है कि जो छात्र स्कूल के स्तर पर अच्छा नही कर पाया वो आगे भी अच्छा नही कर पायेगा और उसे उच्च शिक्षा के स्तर पर भी ‘नालायक’ ही बने रहने देना चाहिए| एक छात्र के स्कूली स्तर पर (और उससे आगे भी) अकादमिक सफलता शैक्षणिक सुविधाओं, अध्यापकों, उसे पढने के लिए कितना समय मिल पाता है, इत्यादि कारकों पर निर्भर करती है| आंकड़े और अध्ययन इस तथ्य की पुष्टि करते है कि पत्राचार माध्यम से पढाई करने वाले छात्रों की बहुसंख्या समाज के सबसे उत्पीड़ित,मेहनतकश और कमजोर तबकों से आती है| वास्तविकता यह है कि दिल्ली विश्वविद्यालय की कट-ऑफ़ पार करने वाले ज्यादातर छात्र समाज के खाते-पीते और सम्पन्न वर्गों से आते हैं, जो महंगे और सुविधासम्पन्न प्राइवेट स्कूलों से पढते हैं और लाखों रुपयों की महंगी कोचिंग लेते हैं|
वहीँ दूसरी और, मेहनतकश तबके के बच्चे या तो सस्ते किस्म के प्राइवेट स्कूलों में शिक्षा पाते है या खस्ताहाल साधनविहीन सरकारी स्कूलों में पढ़ पाते हैं| गरीबी के कारण स्कूल के साथ इन छात्रों को पार्ट-टाइम काम करने के लिए भी मजबूर होना पड़ता है| इन सबका अर्थ यह है कि छात्र समुदाय का बहुसंख्यक हिस्सा होने के बावजूद भी मेहनतकश वर्ग से आये छात्रों की एक बेहद छोटी संख्या ही कट-ऑफ़ अंको की लौह-दीवार को चीर पाती है| स्कूली शिक्षा के स्तर पर ही कुचल दिये गए, भारत के स्कूलों से पास होने वाले छात्रों का बहुसंख्यक हिस्सा उच्च शिक्षा के स्तर पर भी अपनी शैक्षणिक जरूरतों और अधिकारों से वंचित और बहिष्कृत रहते हैं|
राज्य की नीतियां विशिष्ट तबके के हितों में और वर्ग-विभेदी बनी रहती है क्योंकि ये बेशर्मी के साथ दोहरी शिक्षा प्रणाली को लागू करती है और ‘उत्कृष्टता के केन्द्रों’ (centres of excellence) को चलती है जिसमे सम्पन्न वर्ग के गिने-चुने छात्रों को पाला जाता है और उन्हें समग्रतावादी नजरिये से शिक्षा दी जाते है|
यहाँ तक कि दिल्ली विश्विद्यालय द्वारा 10+2+3 प्रणाली में किये गए बदलाव भी भारतीय शिक्षा पद्दति से यूरोपीय शिक्षा पद्दति में आसानी से संक्रमण के उद्देश्य से किये गए हैं ताकि एक छोटे से सम्पत्तिशाली तबकों के छात्रों को ग्रेजुएशन के बाद विदेशो में पढ़ाई के लिए जाने में आसानी हो| बेशक, विश्विद्यालय ने अपने इस कदम के परिणामों पर गौर नही किया है, विशेषकर नियमित कॉलेज छात्रों और पत्राचार के छात्रों के बीच और बढ़ने वाली गैरबराबरी के अर्थों में|
पत्राचार(school of open learning, SOL) में कुछ भी हमारे पक्ष में काम नहीं करता| हमारी अध्ययन सामग्री पुरानी और बेकार हो चुकी है जो न तो हमारी शैक्षणिक आवश्यकताओं की पूर्ति करती है और न ही रोजगार बाजार की जरूरतों को पूरा करती है| हमें हमारी अध्ययन सामग्री अक्सर देरी से मिलती है| हमारी भारी संख्या को देखते हुए लाइब्रेरी सुविधा अपर्याप्त है, लाइब्रेरी भी अक्सर देर से खुलती है और हमेशा जल्दी बंद हो जाती है| हमारे परीक्षा परिणाम अक्सर देरी से आते हैं, जिसके कारण हम में से जो स्नातक के बाद अन्य जगहों पर दाखिला लेना चाहते है वो अक्सर दाखिले की आखिरी तारीख तक भी दाखिला नहीं ले पाते| बेशर्मी का आलम यह है की हमें कुछ गिने-चुने कोर्स ही दिए जाते है और कई महत्वपूर्ण पाट्यक्रम जैसे इतिहास (ऑनर्स), हिंदी (ऑनर्स), समाजशास्त्र (ऑनर्स) हमारे विकल्प का हिस्सा ही नहीं है| खेलों और सांस्कृतिक गतिविधियों के नाम पर हमे कोई सुविधा उपलब्ध नही है| व्यक्तिगत सम्पर्क कार्यक्रम (पर्सनल कांटेक्ट प्रोग्राम) एक भद्दा मज़ाक है, हमे सिर्फ सप्ताह के अंत में एक-आध क्लास करने को मिलती है| कक्षाएं छात्रों की भरी संख्या से अटी होती है और अनुबंध पर लगे शिक्षक हमे पढ़ाते हैं| मानो यह अकुशलता और तिरस्कार ही काफी नही था, हमे अपमान भी झेलना पड़ता है| पत्राचार(school of open learning, SOL) का स्टाफ हमेशा अभद्र और अपमानित करने के तरीके से बात करता हैं, और हमें यह महसूस कराने की कोशिश करता है कि पत्राचार का छात्र होने के कारण हमारा कोई आत्मसम्मान या इज्जत नही है| जब हम नियमित कॉलेजों में रविवार को क्लास करने जाते हैं, तो क्लास ख़त्म होते ही सिक्योरिटी गार्ड हमें यूँ भगाते हैं मानों हम छात्र नही, बल्कि आवारा कुत्ते है जो कॉलेज में घुस आये हैं, हमे लॉन में बैठने तक नहीं दिया जाता| जबकि नियमित कॉलेज छात्रों के साथ ऐसा कुछ नहीं होता| पत्राचार(school of open learning, SOL) छात्रों के लिए लड़कियों और लड़कों की कक्षाओं के अलग अलग सेंटर है| हमे बताया जाता है कि ‘ये लड़कियों की सुरक्षा के लिए है’, लेकिन जो बात हमे हजम नहीं होती वो ये है कि फिर आखिर नियमित कॉलेज छात्रों के लिए सह-शिक्षा (को-एड) कॉलेज क्यों हैं? ऐसा लगता है की हमें बताया जा रहा हो की चूँकि हम समाज के निचले तबके से है, हम महिलाओं के साथ सभ्य व्यवहार करने के लायक नही है, और यह गुण केवल उन अमीरजादों में होता है जो नियमित (को-एड) कॉलेजों में पढ़ते हैं|
हम देखते है कि ये दोहरी शिक्षा प्रणाली : अमीरों के बच्चों के लिए नियमित कॉलेज और मेहनतकश तबके से आये बच्चों के लिए पत्राचार माध्यम, और कुछ नहीं बल्कि बाद वालों को जीवन में आगे बढ़ने से रोकने का एक भयावह प्रयास हैं| इस निराशाजनक हालात से सामना होने के बाद शैक्षणिक रंगभेद, शैक्षणिक छुआछुत जैसे शब्द हमारे लिए ज्यादा से ज्यादा प्रासांगिक होते जा रहे हैं और हमें लगता हैं कि इस जड़ और अन्यायपूर्ण व्यवस्था का विरोध करना न सिर्फ हमारी स्पष्ट आवश्यकता है बल्कि हमारा परम कर्त्तव्य भी है| जो तिरस्कार और भेदभाव हम झेल रहे हैं वो केवल मानवीय भूलों या लापरवाही का नतीजा नहीं है| जिस तरह से राज्य द्वारा नीतियां बनाई जा रही है (दोहरी शिक्षा प्रणाली, 4 वर्षीय स्नातक कार्यक्रम, कोर्स का पुनर्गठन, सेमेस्टर सिस्टम प्रणाली इत्यादि) उससे यह स्पष्ट है कि हमारी दुर्दशा एक पूर्व-नियोजित और सोची-समझी रणनीति का परिणाम है|
हमारी विरोध रैली सिर्फ एक शुरुआत है जिसका मकसद सिर्फ विश्वविद्यालय को ही नहीं बल्कि राज्य को भी चेतावनी देना हैं| हम दिल्ली विश्वविद्यालय के उप-कुलपति को एक ज्ञापन सौंप रहे हैं, इस आशा के साथ कि वे और साथ ही साथ राज्य भी हमारी मांगो पर गौर करेगा और यथाशीघ्र कार्यवाही करेगा| अगर ऐसा नही हुआ तो हम अपने संघर्ष को और तेज करने को मजबूर होंगे और उसे कैंपस से बाहर उन गलियों और मोहल्लों में ले जायेंगे जहाँ से हम आते हैं|
सुजीत कुमार
सदस्य
दिल्ली राज्य समिति
क्रांतिकारी युवा संगठन
सम्पर्क- 9312654851, 9313730069

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