Friday, February 24, 2023

डीयू के एसओएल छात्रों द्वारा भारत की महामहिम राष्ट्रपति तथा दिल्ली विश्वविद्यालय की विजिटर को खुला पत्र

प्रति

श्रीमती द्रौपदी मुर्मू

भारत की महामहिम राष्ट्रपति, और
विजिटर
दिल्ली विश्वविद्यालय

दिनांक: 24.02.2023

महोदया,

हमें पता चला है कि आप 25.02.2023 को होने जा रहे दिल्ली विश्वविद्यालय के 99वें दीक्षांत समारोह में आ रही हैं। हम इस अवसर पर आपका स्वागत करते हैं और आपको डीयू में पढ़ने वाले अधिकांश छात्रों की स्थिति से अवगत कराना चाहते हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय का 100 साल का गौरवशाली इतिहास है, और डीयू प्रशासन विभिन्न प्रकार से इस अवसर का जश्न मना रहा है। लेकिन, यह दुख की बात है कि जब डीयू की शताब्दी मनाई जा रही है, तब भी छात्रों का एक बड़ा हिस्सा डीयू के खस्ताहाल अनौपचारिक-माध्यम संस्थान में पढ़ने को मजबूर है। हम आपका ध्यान उन लाखों छात्रों की दुर्दशा की ओर लाना चाहते हैं जो डीयू के अनौपचारिक संस्थान यानी स्कूल ऑफ ओपन लर्निंग (एसओएल) में पढ़ रहे हैं। यह संस्थान 1962 से चल कर रहा है, और पिछले 2 दशकों में डीयू के रेगुलर कॉलेजों में दाखिला लेने वाले छात्रों की संख्या से दोगुने से अधिक छात्रों को हर साल इस संस्थान में दाखिला दिया जाता है।

हालांकि, यह भयावह है कि एसओएल में पढ़ने वाले छात्रों को न केवल डीयू प्रशासन द्वारा बल्कि पूर्व मानव संसाधन विकास मंत्रालय और वर्तमान शिक्षा मंत्रालय द्वारा लगातार उपेक्षित रखा गया है। शिक्षा मंत्रालय, यूजीसी के माध्यम से, डीयू को अनुदान देता है जिससे छात्रों को रियायती दरों पर शिक्षा मुहैया होती है। परंतु दूसरी ओर, एसओएल 1997 से स्व-वित्त पोषित आधार पर चल रहा है। एसओएल को चलाने की सभी लागतें छात्रों द्वारा वहन की जाती हैं, और यहां तक कि शिक्षकों के वेतन का भुगतान छात्रों द्वारा जमा की गई फीस के माध्यम से किया जाता है।

एसओएल में पढ़ाई-लिखाई की स्थिति बेहद दयनीय है। वर्तमान में 5 लाख से अधिक छात्र एसओएल में पढ़ रहे हैं। यह छात्र सबसे गरीब परिवारों से आते हैं, और अपने परिवारों से शिक्षा प्राप्त करने वाली पहली पीढ़ी हैं। इनमें से अधिकांश छात्र सरकारी स्कूलों से हैं और उन्हें महंगे निजी स्कूलों में छात्रों को उपलब्ध अच्छे शिक्षकों, अच्छे शिक्षण माहौल, अच्छे पुस्तकालय, अच्छे बुनियादी ढांचे, आदि जैसी किसी भी सुविधा के बिना अध्ययन करना पड़ा है। इस कारण से इन छात्रों को डीयू जैसे देश के प्रमुख विश्वविद्यालयों के रेगुलर मोड में दाखिला नहीं दिया जाता है।

विडंबना की बात यह है कि जो युवा सरकारी स्कूलों में 12वीं कक्षा तक पढ़ते हैं, वे सरकारी विश्वविद्यालयों में प्रवेश पाने के लिए कभी भी योग्य नहीं पाए जाते हैं। डीयू जैसे विश्वविद्यालय प्रणाली में रेगुलर मोड में दाखिला पाने वाले अधिकांश छात्र निजी स्कूलों और समृद्ध पृष्ठभूमि से हैं। फिर उन छात्रों का क्या होता है जिन्हें प्रमुख विश्वविद्यालयों में दाखिले से वंचित कर दिया जाता है? इन छात्रों को डीयू के स्कूल ऑफ ओपन लर्निंग जैसे दयनीय अनौपचारिक-माध्यम संस्थानों में धकेल दिया जाता है। डीयू के एसओएल में ज्यादातर छात्र एससी/एसटी/ओबीसी/अल्पसंख्यक समुदायों के छात्र हैं, जिनमें बड़ी संख्या बेहद गरीब पृष्ठभूमि से आने वाली महिलाओं की है। यह छात्र देश की दोहरी शिक्षा व्यवस्था का खामियाजा भुगतते हैं - घटिया सरकारी स्कूलों से वे घटिया मुक्त और दूरस्थ शिक्षा में धकेल दिए जाते हैं। यह शैक्षणिक रंगभेद नहीं है तो क्या है?

महोदया, एसओएल में दयनीय स्थिति और एसओएल प्रशासन का उदासीन व लापरवाह रवैया छात्रों के सपनों और आकांक्षाओं को चकनाचूर कर देते हैं। एसओएल के कामकाज में न तो पारदर्शिता है और न ही कोई जवाबदेही है। एसओएल के कर्मचारी छात्रों के साथ दुर्व्यवहार करने के आदी हैं और उनसे ऐसे बर्ताव करते हैं जैसे कि वे छात्र नहीं अपराधी हों। यहां तक कि एसओएल के वर्तमान कार्यवाहक प्रधानाचार्य ने भी कई बार अपने कार्यालय में छात्रों को पिटवाया है, जिसके संबंध में छात्रों ने उनके खिलाफ पुलिस में शिकायत भी दर्ज कराई है।

एसओएल में स्थिति की भयावहता का अंदाजा तथ्यों से लगाया जा सकता है। वर्तमान में केवल 31 शिक्षक (स्थायी और अस्थायी दोनों) एसओएल में पढ़ाते हैं, जबकि हर साल 1.5 लाख से अधिक छात्र इस संस्थान में दाखिला लेते हैं। इन छात्रों को 180 दिनों में पढ़ाने-योग्य पाठ्यक्रम को पढ़ाने के लिए हर साल सिर्फ मुट्ठी-भर कक्षाएं (अकादमिक काउंसलिंग सेशन) दी जाती हैं। छात्रों को दी जाने वाली अध्ययन सामग्री अनिवार्य पीयर-रिव्यू के बिना निर्मित की जाती है, जिसकी गुणवत्ता बेहद खराब होती है। नतीजतन, छात्रों के भविष्य को ताक पर रखकर उन्हें खराब गुणवत्ता वाली अध्ययन सामग्री को पढ़ने को मजबूर किया जाता है। इसके अलावा, जहाँ डीयू के रेगुलर कॉलेजों में छात्रों को हर सेमेस्टर में 4-5 महीने की पढ़ाई का समय मिलता है, वहीं पिछले कई वर्षों से एसओएल के छात्रों को उनकी परीक्षा शुरू होने से पहले अध्ययन के लिए केवल एक या दो महीने का ही समय दिया जाता है। इस साल भी डेढ़ महीने के भीतर कक्षाएं खत्म कर दी गईं हैं। स्थिति इतनी खराब है कि वर्तमान में छात्रों को अपनी अध्ययन सामग्री लेने के लिए रोज़ घंटों लाइनों में इंतजार करवाया जा रहा है, जबकि यह उन्हें दाखिले के 15 दिनों के भीतर मिलना चाहिए था। यह स्थिति विशेष रूप से भयावह है क्योंकि आंतरिक मूल्यांकन पहले ही शुरू हो चुका है और सेमेस्टर-अंत परीक्षाएं 3 दिनों में शुरू होने वाली हैं।

ज्ञात हो कि आंतरिक मूल्यांकन के रूप में पेश किया जा रहा परीक्षण केवल एक दिखावा है। यूजीसी (मुक्त और दूरस्थ शिक्षा) रेगुलेशन, 2017 के अनुसार टेस्ट, प्रेजेंटेशन, असाइनमेंट, परियोजनाओं आदि के रूप में छात्रों का निरंतर मूल्यांकन होना चाहिए। इसके ठीक विपरीत, वर्तमान सत्र में, एसओएल प्रशासन द्वारा बहुवैकल्पीय प्रश्नों के रूप में आंतरिक मूल्यांकन किया जा रहा है। यह न केवल एसओएल प्रशासन का यह दिखाने का एक नाटक है कि छात्रों के लिए वो आंतरिक मूल्यांकन आयोजित करवा रहा है, बल्कि छात्रों के भविष्य को खतरे में डालने के उद्देश्य से किया जा रहा यह एक आपराधिक कार्य भी है। एसओएल प्रशासन के कुप्रबंधन के कारण कई छात्र अपनी आंतरिक मूल्यांकन परीक्षा भी नहीं दे पाए हैं। इस कारण एसओएल प्रशासन के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करने वाले छात्रों को शांत करने के लिए उनको शिकायत दर्ज करने के लिए एक ऐसा ईमेल दिया गया है जो मौजूद ही नहीं है। यह छात्रों के प्रति एसओएल प्रशासन की लापहवाही और उदासीनता को बखूबी दर्शाता है।

हम आपको यह भी अवगत कराना चाहते हैं कि 2017 यूजीसी विनियम के अधिकांश प्रावधानों का एसओएल प्रशासन खुलेआम और बिना किसी डर के उल्लंघन करता रहा है। यूजीसी के नियमों के अनुसार अनिवार्य कक्षाएं (अकादमिक काउंसलिंग सेशन) छात्रों को दी ही नहीं जाती हैं। अध्ययन केंद्रों पर कक्षाएं लेने के लिए गए अधिकांश छात्रों को वापस लौटा दिया जाता है। ऐसी स्थिति में छात्रों को अपने पाठ्यक्रम की मूल संरचना का भी पता नहीं होता है और बिना पर्याप्त कक्षाओं, पूर्ण पाठ्यक्रम और बिना/अधूरी अध्ययन सामग्री के छात्रों के फेल होने की ज़मीन तैयार की जा रही है।

2017 यूजीसी विनियम का खुलेआम उल्लंघन करना एसओएल प्रशासन के लिए एक आम बात हो चुकी है। जब भी पाठ्यक्रम या पाठ्यचर्या में परिवर्तन होता है; इसे छात्रों के हितों की पूरी तरह से अवहेलना करते हुए लागू किया जाता है। इसका एक उल्लेखनीय उदाहरण 2019 में दाखिला प्रक्रिया के अंत में वार्षिक-मोड से सेमेस्टर-मोड में पाठ्यक्रम परिवर्तन है। 2017 के यूजीसी विनियम में कहा गया है कि इस तरह का बदलाव प्रवेश प्रक्रिया शुरू होने से काफी पहले होना चाहिए, लेकिन एसओएल ने अपने छात्र-विरोधी एजेंडे को आगे बढ़ाते हुए, बिना सोचे, बेतरतीब ढंग से इस नीति को जबरन लागू किया। इस प्रकार, छात्रों को न तो अपडेटेड अध्ययन सामग्री दी गयी और न ही उन्हें अपने पाठ्यक्रम का बुनियादी ज्ञान प्राप्त करने का कोई साधन दिया गया। तब से यही प्रक्रिया दोहराई जा रही है। जब भी पाठ्यक्रम या पाठ्यचर्या में कोई परिवर्तन होता है तो छात्रों को कोई भी अपडेटेड अध्ययन सामग्री उपलब्ध नहीं कराई जाती है। उन्हें केवल बहुत खराब गुणवत्ता वाली पुरानी अध्ययन सामग्री दी जाती जिसमें गलत अनुवाद, गलत उद्धरण, गलत तथ्य और पुस्तकों में शुरू से अंत तक केवल गलतियाँ की भरमार होती है।

एसओएल और देश के अन्य मुक्त और दूरस्थ शिक्षा संस्थानों में शिक्षा की बेहद लचर स्थिति अपने आप में भयावह है। हमारे देश में लगभग हर मुक्त और दूरस्थ शिक्षा संस्थान में हर साल आने वाले छात्रों की भारी संख्या के लिए पर्याप्त बुनियादी ढांचे का अभाव है। इन संस्थानों में छात्र बुनियादी ढांचे के विकास और बेहतर शिक्षा के माहौल की मांग करते आ रहे हैं। लेकिन उनकी आवाज अनसुनी कर दी जाती है। ऐसा लगता है कि इन बहिष्कृत छात्रों के मुद्दों को जानबूझकर नज़रअंदाज किया जा रहा है क्योंकि अंतत: यह मुद्दे घरेलू कामगार महिलाओं, ऑटो रिक्शा चालकों, छोटे दुकानदारों, और मजदूरों के बेटे-बेटियों को परेशान कर रहे हैं।

हम, आम जनता के बेटे और बेटियाँ, आपके सर्वोच्च कार्यालय और दिल्ली विश्वविद्यालय के विजिटर के रूप में आपसे अपील करते हैं कि आप एसओएल में छात्रों की दुर्दशा का संज्ञान लें और एसओएल का सम्पूर्ण अकादमिक और वित्तीय ऑडिट सुनिश्चित करें। हम आपसे यह भी अपील करते हैं कि एसओएल छात्रों की समस्याओं को न्यायसंगत और व्यापक तरीके से दूर करने के लिए अन्य सभी कदम उठाएं।

हम आपके अच्छे स्वास्थ्य की कामना करते हैं।

हिमानी सती,

एसओएल छात्रों की ओर से

क्रांतिकारी युवा संगठन (केवाईएस)

ईमेल: kys.delhi2@gmail.com

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